Monday 7 November 2016

ज्योति तिवारी की कविताएं






ज्योति तिवारी की कविताएं संवेदना के समतल पर बहुत कुछ कहने की हूक लिए हुये हैं। यहाँ हूक की आवाज परिधि की सीमा से टकराती तो है लेकिन अतिरेक से लगातार बच जाती है। कविता की सृजनात्मकता की एक नई पौध के रूप में उधेड़बुन करती हुई कवि अपनी पक्षधरता से परहेज नहीं करती। बनावटी भावुकता और बौद्धिकता से इतर सहज स्वरूप में अपनी देखी-सुनी अनुभवशीलता के रास्ते कविता में उतरती हुई एक कोशिश इनमें दिखाई देती है। सामाजिक समझ को साहित्य की दुनिया में पुष्ट और स्पष्ट करती ज्योति तिवारी की कविताएं रंगरेज़ ब्लॉग पर प्रस्तुत हैं । 


   

सफ़ेद रंग वाली तितली सी वह    

समेटी उसने
तितलियों की रंगीनी अपने सफेद आंचल में। भरी उसने अपनी खाली अंजुली खुशियों की सीपी से।
छुपा लिया मोतियों को पलकों के भीतर। गूंथना सीख लिया सितारों को अपनी सूनी चोटी में। कर लिया शामिल जिन्दगी को मैराथन में जंगली खरगोशों के। विसर्जित करना जानती थी वह तकलीफों को नदी,नालों,नहरों में। महसूसती थी वह रोम रोम की थिरकन मोरों की थिरकन के साथ। बेपरवाह थी वह एकदम उस चीखते समाज से बर्दाश्त नहीं था जिसे श्रृंगारिक होना किसी विधवा का मुस्कराती वह बेहद शालीनता से इनकी नासमझी पर। इकट्ठा करती वह अपनी श्रृंगार पेटी में मिट्टी की खुशबू,विस्तृत आकाश महासागरों और नदियों का पानी सूरज की गर्मी,हवाओं की छुअन। खोलती वह आहिस्ता अपने कमरे की खिडकी और सौन्दर्य को जीने की चाह बना देती है उसे एक चिडिया अब भी लोग कुढ़ते हैं देख उसे प्यार करते हुए श्रृंगार करते हुए।



प्रेम और मूँछें


ख्वाहिश थी उसकी कि मूँछ वाला हो उसका प्रेमी। बडी मूँछ वाला रौबदार मूँछवाला। टिका सके जिसपर वह अपनी कलम और लिख सके सच को सच और झूठ को झूठ। चाहती थी वह कि समा जाए धरती प्रेमी की मूँछ में ताकि संभव हो नापना दुनियां का ओर छोर बस एक बित्ते में। ख्वाब थे उसके कि छिपकर मूँछों की ओट में चखेगी वह सोंधी मिट्टी कुल्हड के टुकडे छोटे - छोटे चॉक। बेचैन इच्छा थी कि उग आये प्रेमी की मूँछे ताकि मिल जाए उसे प्रमाण महफूज होने का। सपनों के गणितीय जोड घटाव के बाद निर्णय था उसका अन्तिम कि होनी ही चाहिए प्रेमी की मूँछ जिससे बना सके वह एक डोंगी पार करे वह सातों लोक नदियां मशहूर है जो अपने भीतर के भयानक गहरे कुओं के लिए जो खींच लेते है डोंगियाँ हमेशा पाताल में।


-ज्योति तिवारी शोधार्थी
काशी हिंदू विश्वविध्यालय




8 comments:

  1. शानदार, बहुत बधाई ज्योति। सृजनात्मकता बरकरार रखिए।

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  2. पहली कविता अच्छी है, दूसरी बहुत घातक !

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  3. Poems are good but need some improvement with imagery and symbolism.

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  4. Saral shabdon me gahare arth liye kavitayen....!..Andar tak chhoote hue....!1

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  5. दोनों कविताएँ बड़ी अच्छी हैं, सच्ची हैं। हालाँकि मुझे दूसरी कविता हर तरह से पसन्द आई। लेकिन स्त्री की अस्मिता को लेकर लिखी गई पहली कविता जैसी कविताओं की बेहद ज़रूरत है।

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 अक्टूबर 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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